अर्जुन के फायदे नुकसान व उपयोग (Arjun chaal ke fayde in hindi)

भारत में प्राचीन काल से ही ह्रदय रोग के साथ ही कई अन्य जटिलतम रोगों में अर्जुन के वृक्ष की छाल से बनी औषधियों का प्रयोग होता चला आ रहा है, जिसका भारतीय चिकित्सा विज्ञान के ग्रंथों में विशद् वर्णन मिलता है।

अर्जुन का परिचय (Introduction of Arjun)

अर्जुन एक औषधीय वृक्ष है जो सदियों से आयुर्वेदिक उपचारों और औषधियों के निर्माण में उपयोग किया जाता रहा है। अर्जुन के तने की छाल और रस मुख्य रूप से औषधियों में इस्तेमाल होते हैं इसके अलावा अर्जुन की जड़ पत्ते तथा फल्लू को भी औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।

अर्जुन पेड़ की छाल के फायदे हृदय संबंधी बीमारियोंटी बी, सूजन, बुखारडायबिटीज़ तथा अनेकों कफ तथा पित्त संबंधित रोगों के उपचार में देखे जा सकते है।

अर्जुन वृक्ष के संबंध में की गई इस प्रारंभिक चर्चा से आप यह तो समझ ही गए होंगे कि अर्जुन एक बहु गुणी तथा सदाहरित वृक्ष है और बहुत सारी बीमारियों के उपचार में उपयोग किया जाता है।

तो आगे हम विस्तार से जानेगें अर्जुन की छाल के फायदे और नुकसान (Arjun chaal ke fayde in hindi / Arjun ki chaal ke fayde). लेकिन उससे पहले बात करते है कि अर्जुन क्या है?, अर्जुन के पेड़ की पहचान और अर्जुन छाल उपयोग में कैसे लें।

ताकि आप जान सकें कि अर्जुन किन बीमारियों में फायदेमंद है तथा इसका उपयोग कैसे करें।

अर्जुन क्या है? (What is Arjuna in Hindi?)

यह भारत के प्रायः सभी प्रांतों में पाया जाता है। हिमालय की तराई, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में भी बहुतायत में पाया जाता है।

अर्जुन का पौधा हमेशा हरा-भरा रहता है, जिसमें पुरानी पत्तियां गिरती रहती हैं और नई गाढ़े हरे रंग की पत्तियां निकलती रहती हैं। इसकी छाल महत्वपूर्ण औषधीय गुण से युक्त होती है। इसमें सफेद रंग के फूल आते हैं। इसके पुष्पक्रम को ‘पेनिकल’ अथवा ‘स्पाइक्स’ कहते हैं।

इसमें अंडाकार धारीदार फल आता है, जिसमें 5-7 की संख्या में कोण अथवा पंख-सी रचना पाई जाती है। फल के अंदर बीज भी फल जैसा ही होता है। इसके बीजों में अंकुरण बड़ी ही कठिनाई से होता है एवं इसके बीज में अंकुरण क्षमता भी कम होती है।

अर्जुन में फूल अप्रैल माह में आता है और फलन जून में होती है। बीज अक्टूबर-नवम्बर में परिपक्व हो जाता है। एक किग्रा. अर्जुन में 200-235 बीज आते हैं। पूर्ण रूप से पके फल से ही बीज एकत्रित करते हैं। अधपके फल के बीज का अंकुरण बिल्कुल नहीं होता। अर्जुन के फल को ‘ड्रप’ कहते हैं।

अर्जुन के पेड़ की पहचान

भारतीय मूल के बहुरोग निवारक और हृदय रोगों के निवारण में अत्यधिक उपयोगी औषधीय वृक्ष अर्जुन की ऊंचाई 60 से 80 फीट तक होती है। इसकी पत्ती फलदार वृक्ष अमरूद से अधिक मिलती है। बहुधा लोगों को भ्रम हो जाता है कि यह अमरूद का ही विशाल वृक्ष है।

संस्कृत भाषा में अर्जुन शब्द का अर्थ स्वच्छ और सफेद से है और अर्जुन के पेड़ के स्वच्छ और सफेद रंग के आधार पर ही इसे अर्जुन नाम से जाना जाता है। 

अर्जुन के पेड़ में वसंत ऋतू में फल आते हैं। इसके हलके झाईदार सफ़ेद फूलों से भीनी- भीनी सुगंध आती है। 

अर्जुन के पेड़ का गोंद पारदर्शी और सुनहरे भूरे रंग का होता है।

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अर्जुन के फायदे (Arjun chaal ke fayde in hindi)

ह्रदय स्वास्थ्य में अर्जुन छाल के फायदे (Arjun chaal for heart)

अर्जुन की छाल के फायदे सबसे ज्यादा हृदय रोगों में ही होते हैं। NCBI (National Center for Biotechnology Information) द्वारा किये गए शोध द्वारा यह बात और अधिक प्रमाणित है गई है।

NCBI द्वारा किये गए इस शोध के अनुसार अर्जुन की छाल में ट्राइटरपेनॉइड (Triterpenoids) नामक विशेष रसायन होता है जो ह्रदय सम्बंधित रोगों के उपचार में बहुत उपयोगी है।(1)

अर्जुन की छाल कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करती है

अर्जुन की छाल पर किये गए शोध कार्यों के अनुसार अर्जुन की छाल कोलेस्ट्रोल और उच्च रक्तचाप (High blood pressure) को नियंत्रित करने में सहायक है। इसके आलावा यह हृदय रोग में होने वाले सीने के दर्द में भी सहायक है।(2)

अर्जुन की छाल से बने चूर्ण का उपयोग ह्रदय रोगों में एक रामबाण औषधि के रूप में किया जाता है। अर्जुन की छाल के चूर्ण का प्रयोग दालचीनी के साथ करने से ह्रदय रोगों में बहुत फायदा होता है।

अर्जुन की छाल ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करती है

अर्जुन की छाल ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में बहुत ही कारगर है। अर्जुन की छाल में ट्राइटरपेनॉइड नामक रसायन पाया जाता है जो हृदय स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होता है।  अर्जुन की छाल ब्लड प्रेशर कम करने वाले गुणों से युक्त है और शोध में इसे Antihypertensive प्रॉपर्टीज वाली औषधि  माना गया है जो ब्लड प्रेशर को सही रखती है।(6)

अर्जुन की छाल डायबिटीज नियंत्रित करती है

डायबिटीज (Diabetes) के उपचार में अर्जुन की छाल का उपयोग बहुत लाभकारी साबित हो सकता है। अर्जुन छाल के फायदे और उपयोग के बारे में जानने के लिए एक शोध किया गया।

इस शोध के अनुसार अर्जुन की छाल में बहुत से एन्ज़ाइम्स (enzymes) पाए जाते है जैसे :- (एल्डोलेस, फॉस्फोग्लुकोसोमेरेस, हेक्सोकिनेस और ग्लूकोनियोजेनिक)। इन सभी एन्ज़ाइम्स (anzymes) के कारण अर्जुन छाल का चूर्ण एंटीबायोटिक गुणों से भरपूर है।

अर्जुन की छाल लिवर और किडनी को स्वस्थ रखती है और रक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करती है। इसलिए डायबिटीज में अर्जुन छाल का चूर्ण एक अच्छी औषधि हो सकती है।(1)

अर्जुन की छाल कान दर्द में आराम देती है 

सामान्यतः बैक्टीरियल इन्फेक्शन के कारण कान में दर्द होता है। अर्जुन की छाल Antimicrobial मतलब सूक्ष्म जीवाणुओं को नष्ट करने वाले गुणों से युक्त है इसके लिए आयुर्वेद में अर्जुन की छाल से बने अर्क को उपयोग में लिया जाता है।(3)

अर्जुन की छाल से बना अर्क कान के इन्फेक्शन से छुटकारा दिलाने में सहायक है। 

अर्जुन की छाल सर्दीखांसी में राहत देती है 

अर्जुन की छाल कई गुणों से भरपूर है। इस पर कई शोध किये जा चुके हैं। शोध के अनुसार अर्जुन की छाल में पाई जाने वाली Antitussive properties (कफ कम करने के गुण) के कारण यह खांसी से निजात दिलाने में सहायक है।(4) शोध में बताया गया है कि अर्जुन की छाल साँस से सम्बंधित रोगों को दूर करने में सहायक है।(5)

सर्दी- खांसी की समस्या में अर्जुन की छाल को दवा के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। अर्जुन की छाल का काढ़ा सर्दी जुखाम में बहुत फायदेमंद होता है। 

अर्जुन की छाल अल्सर को ठीक कर देती है 

पेट की अल्सर  करने के लिए अर्जुन एक बहुत ही अच्छी औषधि है। यदि अल्सर के घाव को सूखने में अधिक समय लग रहा हो या घाव सूखने के साथ ही दूसरे घाव पास में बन रहे हों तो अर्जुन का सेवन किया जाना चाहिए। 

अर्जुन में Cytoprotective (पेट के अल्सर से बचाने वाले गुण) और Gastroprotective (पेट के अंदर की परत को सुरक्षित रखने वाला) गुण होने के कारण यह अल्सरसे छुटकारा दिलाने में फायदेमंद साबित हो सकता है।(7)

अर्जुन की छाल कूटकर उसका काढ़ा बना लें और इससे अल्सर के घाव को धोएं। इससे बहुत फायदा होता है। 

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अर्जुन के फल के फायदे (Arjun ke fal ke fayde)

चेहरे की झुर्रियों को मिटाता है

बढ़ती उम्र के साथ चेहरे पर झुर्रियां पड़ने लगती है और कई बार काम उम्र में भी चेहरे पर झुर्रियां पड़ने लगती है।

अर्जुन के फल को पीस कर उसमें थोड़ा शहद मिलाकर लगातार लगाने से हफ्ते भर में इसके अच्छे परिणाम देखने को मिल जायेंगे। इससे चेहरा दमक उठेगा और झुर्रियां भी काफी हद तक कम हो जाएँगी। 

मुंह से सम्बंधित बिमारियों को दूर करे

मुंह की बिमारियों जैसे मुंह के फोड़े- फुंसी और अल्सर ठीक करने में भी अर्जुन के फल के फायदे देखे जा सकते है।

अर्जुन के फल को खाने से मसूड़े मजबूत होते हैं और दातों में कैविटी, संक्रमण और रक्तस्राव (ब्लीडिंग) की समस्या से छुटकारा मिलता है।

अर्जुन के पेड़ के फल और छाल दोनों ही मुँह की बिमारियों में फायदेमंद है।

इससे दांतों का दर्द और मुंह की बदबू भी दूर होती है।

(और पढ़ें- मुँह के छालों से छुटकारा दिलाने में गुलकंद के फायदे)

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दिल की धड़कनों को नियंत्रित करता है

ह्रृदय रोगों में ही अर्जुन की छाल और अर्जुन फल के फायदे सबसे अधिक हैं।

1 गिलास टमाटर के रस (जूस) के साथ 1 चम्मच अर्जुन पाउडर (चूर्ण) में मिलकर पीने से दिल की धड़कने सामान्य हो जाएगी। 

यूरिन की परेशानी दूर करने में सहायक

अर्जुन के फल के फायदे यूरिन से सम्बंधित समस्याओं में भी देखे जाते हैं।  निरंतर किये गए अर्जुन के फल के सेवन से पेशाब में आने वाली रूकावट दूर हो जाती है। 

टूटी हड्डियों को जल्दी जोड़ देता है

शरीर के किसी अंग की हड्डी टूट जाने पर जुड़ने में समय लगता है। जवान लोगों की हड्डियां तो जल्दी जुड़ने लगती है लेकिन बूढ़े लोगों  शरीर में हड्डी जुड़ने की प्रक्रिया काफी धीमी होती है। 

ऐसे में 1 चम्मच अर्जुन की छाल के चूर्ण को गरम दूध के साथ दिन में 3 बार पीने से हड्डी जुड़ने की प्रक्रिया को तेजी मिलेगी। 

इसके साथ अर्जुन के फल का सेवन करने से अर्जुन के फल के फायदे भी संयुक्त रूप से मिलेंगे।

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अर्जुन की छाल की तासीर गर्म होती है या ठंडी

अर्जुन की छाल की तासीर ठंडी होती है इसलिए इसका सेवन गर्मियों में करने से अधिक लाभ होगा। नियमित रूप से अर्जुन का सेवन करने से मुँह में कभी छाले नहीं होते और यह पेट को भी साफ़ रखता है।

अर्जुन की चाल रक्त को प्राकृतिक रूप से पतला करती है। 

अर्जुन की छाल कैसे लेनी चाहिए (How to Use Arjuna in Hindi)

ऊपर कुछ बिमारियों में अर्जुन के फायदे बताये गए हैं इसके अलावा भी अर्जुन के कई फायदे हैं इन सभी बिमारियों में अर्जुन का एक औषधि के रूप में प्रयोग करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह अवश्य ले लें।

अर्जुन का रस, अर्जुन के पत्तों का काढ़ा और अर्जुन की छाल कैसे लेनी चाहिए-

  • अर्जुन का रस 5-10 मि.ली. तक लेना चाहिए। 
  • अर्जुन के पत्तों का काढ़ा 20-40 मि.ली. तक लेना चाहिए।
  • अर्जुन की छाल का चूर्ण 2-4 ग्राम तक लेना चाहिए। 

अर्जुन छाल के उपयोग (Arjun chhal upyog)

अर्जुन की छाल एस्ट्रिगनेंट, एफ्रोडियेक, कार्डियिक टॉनिक, एंटी डिसेंट्रिक, युरिनरी स्ट्रिंगनेंट और एस्पेक्टोरेंट होता है।

इसका उपयोग तमाम रोगों के नियंत्रण में किया जाता है। जैसे – डिसेंट्री, डायबिटीज, ल्यूकोरिया, एनेमिया, हर्ट ऑयलमेंट, ब्रानचिरिज, ट्यूमर, अस्थमा, ईन्टेस्टाइन, ईनफ्लेमेंटेसन और हाइपरटेंशन आदि में अत्यंत उपयोगी पाई गई है।

इसके साथ-साथ इसकी लकड़ी का प्रयोग फर्नीचर बनाने में भी किया जाता है। 

भारतीय चिकित्सा पद्धति में अर्जुन छाल के उपयोग

प्राचीन भारतीय चिकित्सा ग्रंथों में अर्जुन को कसैला, गर्म, कफनाशक, मधुर, शीतल, कांतिजनक, बलकारक हल्का, वर्ण एवं व्रणशोधक, अस्थिभंग, अस्थिसंहार, पित्तप्रभा, तृषा, दाह, प्रमेह, पांडु रोग, हृदय रोग, विषवाध्य, वतथ्लय, मेदवृद्धि, रुधिर विकार, पसीना, श्वांस, भस्म और वात रोगों में उपयोगी बताया गया है।

अर्जुन में पाया जाने वाला कषाय रस शीतवीर्य, हृदय रोगनाशक, हृदय को शक्ति देने वाले गुणों से युक्त होता है। यह क्षत, क्षय, विष, रक्त विकार, मेदोरोग, प्रमेह, व्रण, कफ एवं पित्त का निवारक है।

  • महर्षि चरक ने अर्जुन को संकोचन एवं मूत्र साफ करने वाला बताया है।
  • सुश्रुत ने अर्जुन की राख को सर्पदंश में उपयोगी कहा है।
  • आचार्य वाग्भट्ट ने अर्जुन को हृदय रोग में उपयोगी बताया है। उन्होंने इसे बिच्छू के डंक में भी उपयोगी बताया है।
  • वाग्भट्ट के अतिरिक्त चक्रदत्त, भाव मिश्र तथा अन्य भारतीय आयुर्वेदाचार्यों ने भी अर्जुन को हृदय रोग की प्रमुख औषधि के रूप में उल्लेख किया है।

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अर्जुन से बनने वाली औषधियां

अर्जुन घृत

अर्जुन घृत हृदय रोगों में उपयोग ली जाने वाली आयुर्वेदिक औषधि है। 

अर्जुन घृत बनाने की विधि

अर्जुन घृत बनाने के लिए अर्जुन की छाल के बारीक चूर्ण को दस गाने जल में चौथाई बचने तक पकाया जाता है। इसमें अर्जुन कल्क और गौघृत मिलाकर पुनः जलरहित होने तक पकाया जाता है।

वैद्य लोग हृदय रोगी को यह घृत 5 से 10 ग्राम सुबह-शाम सेवन कराते हैं, जो हृदय संबंधी रोगों में लाभकारी पाया गया है।

क्षयाकास

क्षयाकास: यह कठिन क्षय रोग की आयुर्वेदिक औषधि है। क्षय रोगी को जब खांसने में कफ के साथ खून आता है, उस हालत में रोगी को इसका सेवन कराया जाता है।

इसका निर्माण अर्जुन की छाल के चूर्ण को अडूसा (वासा) के पत्तों के रस की सात भापना देकर बने रसायन के रूप में होता है। इसे मिश्री, गौघृत या शहद के साथ रोगी को चटाया जाता है, जिसका प्रभाव क्षय रोग में अत्यंत लाभकारी है।

अर्जुनारिष्ट के फायदे और नुकसान (Arjunarishta benefits)

अर्जुनारिष्ट सिरप के फायदे :-

  • अर्जुनारिष्ट अर्जुन की छाल से बनने वाली फेफड़े एवं हृदय रोगों की सबसे उपयोगी औषधि है।
  • अर्जुनारिष्ट उच्च और निम्न रक्तचाप (High and Low Blood Pressure) को सामान्य स्थिति में लेन में सहायक है।  
  • अर्जुनारिष्ट कसरत करने से छाती में उठने वाले दर्द को काम करने में सहायक है।
  • अर्जुनारिष्ट साँस सम्बंधित रोगों में मदद करता है और फेफड़ों की क्षमता बढ़ाने में सहायक है। 

अर्जुनारिष्ट के नुकसान:-

आयुर्वेदिक ग्रंथों और चिकित्स्कीय पुस्तकों में इसके नुकसान का जिक्र नहीं किया गया है लेकिन फिर भी इसका सेवन उचित मात्रा में और चिकित्सक की सलाह से ही करना चाहिए। 

अर्जुनारिष्ट बनाने की विधि :-

  • अर्जुनारिष्ट बनाने के लिए अर्जुन की छाल और उसके आधे के बराबर मुनक्का और महुए के फूल को 10 गुने जल में औंटाते हैं, चौथाई जल शेष बचने पर उतारकर उसे छान लेते हैं।
  • इस छने हुए क्वाथ में अर्जुन की छाल के बराबर पुराना गुड़ और धावड़ी का फूल डालकर मिट्टी के बर्तन में पैक करके रख देते हैं।
  • सवा माह के बाद मिट्टी के बर्तन को खोलकर द्रव को छानकर बोतलों में भर लिया जाता है।

हृदय रोग के अलावा अर्जुन का प्रयोग अन्य रोगों में भी होता है, जिसका विवरण नीचे दिया गया है।

अर्जुन क्वाथ के फायदे (Arjun kwath benefits)

अर्जुन क्वाथ : फूटे हुए व्रणों से जब रक्त वाहिनियों का दूषित, रोगकारी, कीटाणुयुक्त जल रिसकर रक्त में मिलने लगता है, ऐसे व्रणों को अर्जुन छाल के क्वाथ से धोने और क्वाथ को पीने से अर्जुन छाल में पाए जाने वाले कैल्शियम एवं अन्य प्रभावकारी उपयोगी तत्वों के प्रभाव से घाव तेजी से भरने लगता है।

रक्तातिसार में बकरी के दूध और जल में बने अर्जुन क्वाथ या छाल के बारीक चूर्ण को मक्खन या छाछ में मिलाकर सेवन कराने से रक्तातिसार से मुक्ति मिल जाती है।

अर्जुन का काढ़ा प्रातः एवं सायं लेने से जीर्णज्वर के साथ ही शरीर की दुर्बलता और पांडता भी दूर हो जाती है। कूटे हुए अर्जुन की छाल को रात भर जल में भिगोने के बाद उसे सुबह उबालकर काढ़े के रूप में लेने से रक्तपित्त शांत हो जाता है।

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अर्जुन की छाल के नुकसान बताइए

किसी भी चीज का अधिक मात्रा में सेवन शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है। अर्जुन की छाल के अधिक सेवन से कुछ नुकसान भी देखने को मिले हैं, जो यहाँ दिए गए हैं।(10)

अर्जुन छाल के नुकसान

  • अर्जुन के सेवन से कई बार कब्ज़ की शिकायत भी होने की संभावना रहती है।
  • गर्भवती महिलाओं और शुगर का मरीजों को इसके सेवन में सावधानी बरतनी चाहिए और चिकित्सक की सलाह से ही इसका सेवन करना चाहिए।
  • पेट में हलकी सूजन और दर्द होने की संभावना है।
  • अर्जुन के सेवन से कुछ लोगों को अनिद्रा की समस्या हो सकती है।
  • बदन दर्द और सिरदर्द भी होने की संभावना है।
  • शरीर में कमजोरी महसूस होना, उलटी आना और जी मचलना जैसी समस्याएं हो सकती है। 

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पर्यावरण संरक्षण में अर्जुन की भूमिका

आज की बेतहाशा बढ़ती आबादी और आधुनिक जीवन शैली एवं रहन-सहन से जनसामान्य में हृदय रोग की भारी बढ़ोतरी ने अर्जुन वृक्ष की उपचारक महत्ता काफी बढ़ाई है। वहीं इसकी पर्यावरणीय विशेषताओं के चलते बढ़ती पर्यावरणीय चेतना ने भी इसके महत्व को और बढ़ाया है।

पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से अर्जुन का विशेष महत्व है। इसके वृक्ष, क्षारीय, लवणीय, ऊसर, नम पथरीली और अनुपयोगी भूमि पर आसानी से उगाए जा सकते हैं।

नदियों, तालाबों और नहरों के किनारे दलदल वाली और कटाव वाली नम भूमि पर इसके वृक्ष को लगाकर भूमि कटाव को रोककर मृदा क्षरण पर अंकुश लगाने का कार्य किया जा सकता है।

मधुमक्खी पालन के लिए अर्जुन का पेड़ 

मधुमक्खियों को इसका फूल विशेष प्रिय है अतः अनुपयोगी, बेकार भूमि पर इसके वृक्ष को लगाने के बाद मधुमक्खी पालन का कार्य बखूबी किया जा सकता है, जिससे बेरोजगारी के इस युग में ग्रामीण नौजवानों और महिलाओं को अर्जन की छाल और मधु संग्रह के कार्यों में लगाकर रोजगार दिया जा सकता है।

आज पर्यावरण संरक्षण के लिए सड़कों के किनारे लगे शीशम के वृक्षों का फफूंदजनित रोगों से व्यापक विनाश हो रहा है। उनकी जगह अर्जुन के वृक्ष व्यापक उपयोगी साबित हो सकते हैं, क्योंकि इसके वृक्षों में रोग और नमी का प्रभाव बहुत कम पड़ता है।

इनकी ऊंचाई भी शीशम के वृक्ष से कम नहीं होती और ये छायादार भी होते हैं। इसके अलावा ये सड़कों के किनारे के निवासियों के लिए मधुमक्खी पालन कर, शहद के संचयन से रोजगार भी उपलब्ध करा सकते हैं।

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